Monday, October 26, 2009

गरीब का कहन

''अभिशाप''

जो जहर बनकर मेरी रगों में बहता है ,
जो जख्म बनकर मेरे सीने में रहता है ,
जो खून बनकर मेरी आँखों से बहता है ,
जो तेजाब की बूंदों सा मेरे माथे से टपकता है .....
वो हर रोज ..सोने से पहले..
और उठने क बाद ,मुझसे कहता है ...
"मैं नियति का दिया हुआ वो अभिशाप हूँ तुझे ,
जिसे ये जमाना गरीबी कहता है ...

9 comments:

  1. garibi ke upar bahut hi sunder abhivyakti ke liye badhaai.

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  2. वो हर रोज ..सोने से पहले..
    और उठने क बाद ,मुझसे कहता है ...
    "मैं नियति का दिया हुआ वो अभिशाप हूँ तुझे ,
    जिसे ये जमाना गरीबी कहता है ...
    sundar rachna..

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  3. samjha ye touching laga "Abhishaap"

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  4. uffff.....shabd nahin hain is k baare mein kuch bhi kehne k liye.

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  5. bahut khub vandna ji... khub..

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  6. वंदना
    सचमुच गरीबी से बढ़ कर अभिशाप कोई दूसरा नहीं
    तुम्हरी संवेदना और दूर दृष्टी
    बड़ी सम्भावनाये जगाती है
    बधाई

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  7. Baba re...Vandna Ji...kitne seedhe shabdon mein kitni saral bhasha mein lagbhag sab kuchh kah diya aapne..! :)
    Mind blowing....ex-hilarating....excellence in world selection..dats wat makes ur dis poem so realistic n easy to understand ! :)

    Jawab nahi....m spell-bound almost !

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  8. thanks sashi ji ...bahut bahut shukriya blog par aane k liye...:)

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तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...