१
मुझे आदत है इन अंधेरो में रहने कि ...
ऐ जिन्दगी ये ख्वाबो के भ्रमित उजाले ...
मुझे ना दिखलाया कर ...
मेरे शहर कि हवाएं बड़ी जालिम है ...
यहाँ चिरागों कि उम्र ज्यादा नहीं होती ........
2
जिन्दगी के मायने लाख समझाए मैंने ....
कितने अरमां शीशे से ....तोडे ,
कितने जज्बातों के... मूक बुत... ढहाए मैंने...
अब तो छोड़ा है इनके हाल पर इनको ,
ये न कभी बाज आएँगी.....
बड़ी बेगैरत है ये दिल की मुरांदे ...ऐ खुदा ,
जलील होकर भी तेरी चोखट पे बार बार आएँगी ........
३
ऐ जिन्दगी तेरे सोदें मुझे कभी ना समझ आये ....
खुद ही को रखके गिरवी यहाँ चंद खुशिया उधार आती है ,
किस पलडे में तोलू मैं तेरी इस तिजारत को ......
लम्हों कि जीत कि खातिर...
ख्वाहिशे क्यूं सदियाँ हार जाती है...
4
ऐ जिन्दगी मैंने हर लम्हे को दिल से समेटा है ...
फिर भी क्यूं हर पल में कुछ छूट जाता है ,
वो (खुदा ) वाकिफ है मेरी हर एक बिलखती
नादाँ ख्वाहिश से ..फिर भी क्यों हर बार मुझसे रूठ जाता है
5
ऐ आईने ...मेरी हसरत ए नादानिया, जूनून ,वैराग्य....
और इस पागलपन के अंदेशे न लगाया कर ....तू सोच ....
के मस्त रवानी में बहती हवाओं की
बेताबिया के राज भला किसने जाने है ?......
6
जाने किस रुख में.. हमें बहा ले गयी तन्हाई ...
ख्वाबो के वीराने में आकर जाना हमने ,
पतझर में .. गुल ऐ शाख को आख़िर ....
क्यूं महंगी पड़ जाती है पुरवाई....