Monday, May 24, 2010

कैसे ना देखूं आँखों का दर्पण



कैसे मोन करूँ अश्को को
कैसे मन कि गिरह छुपाऊं
कैसे ना देखूं आँखों का दर्पण
कैसे खुद को, मैं झूठलाऊं ...

तुम गौरव कि जैसे गरिमा
तुम पावक दिए कि ज्योति
कैसे सौंप दूं तुझको अपने
बेमोल अश्को के मोती..

तुम ह्रदय के पावन तट पर
एहसासों कि मोंज तूफानी
मैं पलकों के साहिल पे जैसे
किसी ख्वाब कि मौन कहानी ..

मैं लिखूं प्रीत का गीत कोई
मगर अर्थ कहाँ से लाऊं

कैसे मोन करूँ अश्को को
कैसे मन कि गिरह छुपाऊं
कैसे ना देखूं आँखों का दर्पण
कैसे खुद को मैं झूठलाऊं

ह्रदय मानों कुछ जीत गया
नयन जब सुधिया हारे ,..
लहरों कि अल्हड़ता सहते
जैसे खामोश किनारे..

तुम ढलती सांझ कि जैसे धूप
मैं मरुथल सी तपती रेती ...
तुम प्यास में बँटते गर बादल से
मैं भी चितवन को नम कर लेती..

चाँद तारों से तुझको मांग लूं
या मैं ,आज खुदा अजमाऊं

कैसे मोन करूँ अश्को को
कैसे मन कि गिरह छुपाऊं
कैसे ना देखूं आँखों का दर्पण
कैसे खुद को मैं झूठलाऊं


वक्त ने गिरह संग सौपी
मुझको ये अनमोल सोगातें ..
याद़ों के मौसम को पाया मैंने
गिरवी रखकर दिन और रातें

पलकों से झर झर झर झरती
पीर कि अनूठी करामातें
जहन के रेतीले आँगन में
जैसे फाल्गुन कि बरसातें

लड़ मरूं मैं सारी दुनिया से
मगर खुद से कैसे टकराऊं

कैसे मोन करूँ अश्को को
कैसे मन कि गिरह छुपाऊं
कैसे ना देखूं आँखों का दर्पण
कैसे खुद को मैं झूठलाऊं

नयन कलश से रीते रीते
कमंडल से हैं प्यासे ..
मन के सूने पनघट पर ..
जैसे ख्वाइशो के मृग प्यासे .

भीगी भीगी पलकों में
यूँ जले ख़्वाब के मोती ...
साँझ कि सुनहरी धूप में
जैसे तपती साहिल कि रेती ..

अहम् तजूं एह्न्कार तजूं ,जिन्दगी कि
रीत से, आगे कदम बढ़ाऊं,,

कैसे मोन करूँ अश्को को
कैसे मन कि गिरह छुपाऊं
कैसे ना देखूं आँखों का दर्पण
कैसे खुद को मैं झूठलाऊं..



10 comments:

  1. Pyari- dulari type lagi ye kavita ...aur aapki hindi...vaari jaaoon ji .....jaane ham kab likh paayenge tumhare jaisa.....nazar -wazar utar lena ji... hamne to laga di :-)

    ReplyDelete
  2. hahhahhaa abbee kahe ki hindi yaar ....koshish to ki thi sudh hindi me likhne ki par ' urdu k bina apni baat nahi bani :( ..or tumne kuch jyada hi keh diya ,,..mere jaisa :-O abbe main roj tum logo ko padhke seekhti hoon ..or tumhari hounslaafjayi hi sangeevan booti hai sayad ..thnks a lot

    ReplyDelete
  3. Mindblowing kavita kahi hai vandu,,,,Just tooo toooo tooo good.... :)

    ReplyDelete
  4. सार्थक और बेहद खूबसूरत,प्रभावी,उम्दा रचना है..शुभकामनाएं।

    ReplyDelete
  5. मैं लिखूं प्रीत का गीत कोई
    मगर अर्थ कहाँ से लाऊं

    आपके गीत पर हमेशा गहरा अर्थ लिए होते हैं ...
    अच्छे उद्गार हैं ...

    ReplyDelete
  6. @ sanjay ji ...thanks a lott ..apne ana keemti samay kavita ko diya :)

    ReplyDelete
  7. @ nasva ji .....bahut bahut shukriya sir aapko meri rachnaye pasand aayi ..achha laga jaankar thanks a lott

    ReplyDelete
  8. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  9. कैसे मोन करूँ अश्को को
    कैसे मन कि गिरह छुपाऊं
    कैसे ना देखूं आँखों का दर्पण
    कैसे खुद को मैं झूठलाऊं ....superb lines...loved it..

    ReplyDelete

तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...