मुसव्विर* हूँ मैं ख्वाबो कि तस्वीर बनाती हूँ
इस हुनर ए रायेगाँ* पर मुझे गुरूर बहुत हैं..
समंदर ,झील ,दरिया ...क्या क्या न कहूँ,
बात इतनी है के उन आँखों में नूर* बहुत है..
बक्शी है खुदा ने गजब जादूगरी उसको,
इसी आसूदगी* में शायद वो मगरूर बहुत है ..
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उसकी जुल्फों में उलझकर बहकते हैं झोंके,
हम तो समझे थे हवाओ में सुरूर* बहुत है..
बैठकर यादों के सायें हंसती रही कुछ देर,
लगा के टूटकर कुछ कहीं चूर चूर* बहुत है..
मेरा ही राजकुमार मुझे मिलके खो गया,
उसकी खातिर तो दुनिया में हूर* बहुत हैं..
कू ए जुनूँ* है इश्क, थक जाऊं भला कैसे,
कैसा सबात* अभी तो अदम* दूर बहुत है..
है मुमकिन शिकस्त ए दिल* आशना* थे हम,
हमारे जब्त से खजल* अब ये नासूर* बहुत है..
वो परिंदा मेरी मुंडेर से बड़ी हैरत* में उड़ा,
कहीं दूर चलूँ यहाँ पिंजर ए दस्तूर* बहुत है..
मोला मैं बसर करता रहूँ पंछी बनके हर जनम,
इंसानों कि बस्ती में तो हर कोई मजबूर बहुत है..
"वन्दना "
मुसव्विर*= चित्रकार
रायेगाँ= useless work
noor = beauty
आसूदगी = संपन्नता
सुरूर = नशा
चूर चूर = टूटकर बिखरा हुआ
हूर = परी
कू ए जुनूँ*= जूनून कि गली
सबात = ठहराव
अदम = अंत , शून्य लोक
शिकस्त ए दिल* = दिल कि हार
आशना = मालूम होना
खज़ल= शर्मिंदा
नासूर = जख्म
हैरत = हैरानी