Friday, February 18, 2011
छुपाकर दिल-ओ-ज़ेहन के छाले रखिये
पुरस्कृत रचना: गज़ल
लबो पे हँसी, जुबाँ पर ताले रखिये,
छुपाकर दिल-ओ-ज़ेहन के छाले रखिये
दुनिया में रिश्तों का सच जो भी हो,
जिन्दा रहने के लिए कुछ भ्रम पाले रखिये
बेकाबू न हो जाये ये अंतर्मन का शोर ,
खुद को यूँ भी न ख़ामोशी के हवाले रखिये
होती है मोहब्बत भी तलब ए मुश्कबू सी ,
इस सफर ए तीरगी में नज़र के उजाले रखिये
मौसम आता होगा एक नयी तहरीर लिए,
समेटकर पतझर कि अब ये रिसाले रखिये
कभी समझो शहर के परिंदों की उदासी
घर के एक छीके में कुछ निवाले रखिये
तुमने सीखा ही नहीं जीने का अदब शायद,
साथ अपने वो बुजुर्गो कि मिसालें रखिये
(मुश्कबू= कस्तूरी की गंध
रिसाले = पत्रिका)
समेटकर पतझर कि अब ये रिसाले रखिये
कभी समझो शहर के परिंदों की उदासी
घर के एक छीके में कुछ निवाले रखिये
तुमने सीखा ही नहीं जीने का अदब शायद,
साथ अपने वो बुजुर्गो कि मिसालें रखिये
(मुश्कबू= कस्तूरी की गंध
रिसाले = पत्रिका)
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वन्दना सिंह