तेरे बाद जिन्दगी में वो मौसम नहीं आये
खुलकर रोये तो बहुत लेकिन हंस नहीं पाये
मेरे पागलन को सौंप कर विरहा कि अगन
तुम ऐसे गये की कभी लौट कर नहीं आये
रो रो के मना लेते तुझे अपना बना लेते
रिश्तो कि गरीबी ने ये हक़ नही पाये
देखा है खुदको हमने मिटते रफ्ता रफ्ता
हम हार गये खुद से हमसे जीत गए साये
वो रास्ता कि जिससे हो लौटना मुश्किल
भूल कर भी कभी कोई मेरे यार नहीं जाये
वंदना
इस गजल का मैं कायल हो गया ,कथ्य एवम शब्द संयोजन दोनों प्रशंसनीय हैं , बहुत बहुत आदर जी /
ReplyDeleteवंदना जी
ReplyDeleteइस कविता पर आपकी प्रसंसा करने के लिए शब्द भी नहीं है मेरे पास ....
आपने तो जन्नत ही लूट ली ....ऐसे ही लिखती रहिये
रो रो के मना लेते तुझे अपना बना लेते
ReplyDeleteरिश्तो कि गरीबी ने ये हक़ नही पाये
बहुत खूबसूरत गज़ल
bahut badhiyaa gazal
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ReplyDeleteबहुत सुन्दर शब्दों से अपने भाव को बाँधा है ..
ReplyDeleteखूबसूरत , नज्म सी लगती ये ग़ज़ल
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ग़ज़ल| धन्यवाद|
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ReplyDeleteग़ज़ल बहुत सुंदर है.
ReplyDeleteअति सुन्दर
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