Tuesday, August 30, 2011

"जिन्दगी"




एक नज्म
 रह गयी है मेरी 
तुम्हारे पास  
 गलती से ..

जिसका नाम अनजाने में 
"जिन्दगी" 
रख दिया था मैंने 

मायने मालूम नहीं थे  ना  
इसलिए छूट गयी 
शायद तुम्हारे पास !

मायने समझ आएँ हैं तो 
अक्ल भी आ गयी है 
अब नहीं दोहराउंगी 
जीवन कि उन तहरीरों को 

और अगर लिखूंगी भी 
तो किसी को सौंपने कि 
भूल तो हरगिज़ नहीं करूंगी 


क्योकि गलतियां 
दोहराने पर जिन्दगी 
पछताने का  भी मौका नहीं देती 


- वंदना 


Saturday, August 27, 2011

ग़ज़ल --हम रीत पुरानी हो जाएँ




बूँद बूँद में घुलकर हम  भी  बहता पानी हो जाएँ..
जिन्दगी को लिखते लिखते एक कहानी हो जाएँ !


अल्फाज़ दिये मैंने अपनी धड़कन कि तहरीरों को..
तुम लबो से छू लो  तो ये   ग़ज़ल सुहानी हो जाएँ !


मेरी आँखों के दर्पण में   खुद को सवाँरा कीजिये.. 
इन  शर्मीली सी आँखों का  हम भी पानी हो जाएँ !


मुझको साँसे बख्श दो   मैं धड़कन तेरी हो जाऊं..
तुम जो ये सौदा करलो जीने कि असानी  हो जाएँ !


तुम राधा कि  दीवानगी  मैं हूँ   मुरली  कि  तान..
अपनाकर  इस प्रीत को  हम रीत पुरानी हो जाएँ  !!


वंदना

त्रिवेणी







 हवाओं में घुल गया कैसे  बादल कि धड़कन का शोर 
मोर पंख से बाँधी किसने ..सावन कि साँसों कि ड़ोर

दिल जानता भी कुछ नहीं और मानता भी कुछ नहीं !
  


-- वंदना 


Friday, August 26, 2011

त्रिवेणी



खुद से बाहर खोजा  तो खोया ही खोया 
खुद में अगर  झाँका  तो पाया ही पाया  


एहसासों कि दुनिया खुद से बाहर नहीं मिलती !!

Thursday, August 25, 2011

त्रिवेणी




एक अकेली चिड़िया को देखा सामने बगीचे में 

  कितनी मगन ,  कभी  इधर फुदकती  कभी उधर 


बड़ा प्यारा होता है किसी तसव्वुर के साथ खेलना   !!

Wednesday, August 24, 2011

त्रिवेणी







तेरी  हर  इनायत पे एतबार है  मुझे 
 मेरी जिंदगी का सच स्वीकार है मुझे 

तू अपने एतबार पे एतबार तो रख ! 

Monday, August 22, 2011

त्रिवेणी




आईने पर   ये इलज़ाम अच्छा  नहीं है
जब अपना नजरिया ही सच्चा नहीं है ..

सूरत और सीरत दो अलग अलग बाते हैं !

Thursday, August 18, 2011

तसव्वुर के मौसम





बचपन कि वो बरसाते
जब स्कूल से आते वक्त 

अक्सर भीगने का लुफ्त 
लेने में   मेरी किताबे भी
भीग जाया करती थी

और फिर मैं धूप का
इन्तजार करती थी
उन्हें सुखाने के लिए

आज समझ आया
चाहत और जरूरत में
कितना फर्क है

बरसातें मेरी चाहत है
और धूप जरुरत !

दुसरे शब्दों में कहूँ
तो तुम वही एक बरसात हो
जिसने भिगो दिया है
मेरे वजूद को ...
और मुझे जिंदगी से
धूप कि तलाश है ..

अजीब बात है
धूप सुखा सकती है
हमारे सीलेपन को
मगर भीगने के
उस सुखद एहसास को नहीं ..
जो हर बरसते मौसम में
 हरा हो जाया करता है ...

" जिंदगी कि ये धूप
और तसव्वुर के मौसम
कौन किस्से हारे
कौन किसको जीते ! 


- वंदना


Tuesday, August 16, 2011

त्रिवेणी





कैसे खुद पर कोई काबू किया जाए
बेसबब  भी अक्सर कैसे हँसा जाए

ये हुनर संजीदा उदासी सिखाती है !

- वंदना

Monday, August 15, 2011

त्रिवेणी



कुछ लम्हों कि उधारी एक उम्र कि किश्ते,
मंहगी सब इनायते.. बहुत सस्ते से रिश्ते ..

जिंदगी एक अजीब तिजारत का नाम हैं !

Sunday, August 14, 2011

त्रिवेणी



वक्त कि छोटी सी भूल कोई गुनाह बने 
 इससे पहले ही जिन्दगी ने कान खींच लिए 

माँ भी बचपन में ऐसा ही करती थी ना  !


- वंदना

Saturday, August 13, 2011

मैंने तुमसे ही कितना छुपाया तुमको..

मैंने ख्वाबो कि इक तस्वीर सा बनाया तुमको
कितने रगों से जिंदगी में मैंने  रचाया तुमको..

जिसे ढूंढती रहीं है एक उम्र कि नादानियां
उसी  अनजान सी सूरत सा पाया तुमको..

बहारों में खिलते हुए इन फूलों  कि तरह
अपने होंठों पे मुस्कान सा  सजाया तुमको 

सावन कि सिसकती हुईं इन रातों कि तरह
मैंने अक्सर hi आंसुओं में   बहाया तुमको..

जिंदगी से ख़्वाबों कि कोई शर्त भी  नही थी
बेसबब सा हर एक आरजू में बसाया तुमको..

रह रह के चोंकाया  बीते हुए लम्हों ने मुझे
अपनी कोशिशों में कितना भुलाया तुमको..

तुम नज्मों में बिखर गये मेरी रूह बनकर
मैंने    तुमसे ही     कितना छुपाया तुमको..


- वंदना
8/12/2011 

Thursday, August 11, 2011

ग़ज़ल



बात बात पे अब सब्र खोते नहीं है
रो चुके हैं बहुत  अब रोते नहीं है..
.
दिल   ये पागल है   तो हुआ करे
होश अपने हम अब खोते नही हैं..

बेबशी है कोई , जो  रहेगी  सदा 
जज्बात  बसमें कभी होते नहीं हैं ..

देखकर लहरें ..कह रहा है कोई
दिल को भी सलीके होते नहीं है ..

नींद आँखों की सो गयी कब से
ये ख़्वाब जाने क्यूं सोते नहीं हैं
..!


--वंदना

Monday, August 8, 2011

पतझड़ में कुछ फूल खिले रह गये


दर्द के बाकी   ये सिलसिले   रह गये ,
पतझड़ में कुछ फूल खिले   रह गये...!


कैसी शिकायत  अब कौन से  शिकवे 
दिल में होके दफ़न सब गिले रह गये !


उड़ गये कुछ  परिंदे छोड़ कर बसेरा 
झूलते डाल पर  ये घौंसले   रह गये .!


क्यूं   खो गया जाने जोम* ए रफाकत 
क्यूं  दरमियाँ  अब ये फासलें  रह गये !


टूटते  रिश्ते का हुस्नएआखिर यही था 
बात करनी थी मगर होंठ सिले रह गये !




- वंदना

जोम ए रफाकत = दोस्ती का घमंड
हुस्न ए आखिर = अंतिम सुंदरता 

Saturday, August 6, 2011

आईना




उदास देखकर मुझे मुस्कुराया कभी ,

यूँ ही बेवजह  मुझको हँसाया कभी ..

बिन बोले इसने सारे ही राज़ ले लिए मेरे 

अजीब  रम्श-सिनाश*   है  ये आईना भी ..

इसने अक्सर बेबात ही बहुत रुलाया मुझको  !





रम्श-सिनाश* = friend -who understand the hints



- वंदना 


Friday, August 5, 2011

पूछो जंगल के मोर से !


क्यूं घिर आए बादल काले 
आज ये चारों से ..
किसने दी आवाज इन्हें 
पूछो जंगल के मोर से !

प्यासे तरुण किसे पुकारे 
कोयल काली क्या गाए
क्यूं झूम उठा अम्बर सारा 
क्यूं बहकी हैं आज फिजाएं..

इन आँखों कि प्यास बंधे 
कैसे काज़ल कि ड़ोर से !

क्यूं घिर आए  बादल काले 
आज ये  चारों और से ..
किसने दी आवाज़ इन्हें 
पूछो जंगल के मोर से  !


सूने तट ये किसे पुकारे..
बहती नदियाँ क्यूं बलखाये, 
कैसी   है ये   तान हवा में 
धुन बंसी कि कौन बजाये.. 

बाँध गया ये मन वैरागी 
किसे पलकों कि कोर से !


क्यूं घिर आए बादल काले 
आज ये  चारों और से..
किसने दी आवाज़ इन्हें 
पूछो जंगल के मोर से ! 



पर्वत बैठा सोच   रहा है 
क्यूं धरती  इतना इतराए..  
मोजों कि ये अजब रवानी 
लहर लहर सागर लहराए..


कोई बचा ले साहिल को 
इन लहरों के इस शोर से ! 

क्यूं घिर आए बादल काले 
आज ये  चारों और से ,
किसने दी आवाज़ इन्हें 
पूछो जंगल के मोर से !


बूंदों से तन मन ये भीगा 
गलियों से बरसात चली 
ह्रदय के सूने पनघट पर 
होले होले सांझ ढली 

कान्हा मेरे तुझे पुकारूं
और मैं कितनी जोर से !


क्यूं घिर आए बादल काले 
आज ये  चारों और से..
किसने दी आवाज़ इन्हें 
पूछो जंगल के मोर से !!


- वंदना
8/5/2010




Tuesday, August 2, 2011

ऐ मन भला क्यूं तेरी खातिर ये जीवन उलटी चाल चले ?




(इस कविता का भाव यही है के ...जीवन किसी के लिए अपनी दिशा नही बदलता ..जो जैसा है वैसा ही है और रहेगा..हमारे मन कि अज्ञानता इसे समझे या न समझे  !) 


क्यूं पश्चिम से दिन निकले ?
और क्यूं पूरब में सांझ ढले ?
ऐ मन भला क्यूं तेरी  खातिर 
ये   जीवन  उलटी चाल चले ?
- - - - - - - - - - - - - - - 
क्यूं नींदों में सूरज घर कर जाए ?
क्यूं    विरह में   न    रात जले ,
ये  अम्बर आखिर क्यूं झुक जाए 
क्यूं  चंदा का      वनवास  टले ?

ऐ मन भला क्यूं तेरी  खातिर 
ये   जीवन   उलटी चाल चले ?
- - - - - - - - - - - - - - 
बनते पतझड़ के   वो साक्षी
जिनसे कल  के मधुमास थे 
वही तरुण     अब नही रहेंगे 
जिनसे  बहारों के उल्लास थे 

बागवां   कि पीड़ा पर क्यूं 
पुष्पों  कि मुस्कान खिले ?

ऐ मन भला क्यूं तेरी खातिर 
ये जीवन  उलटी चाल चले ?
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राम  अहिल्या   करते  देखे 
एक  पत्थर के   तासीर को !
रघुकुल    रीत   नहीं दे पायी 
न्याय  सिया   कि पीर को !

मन कि  कंचित  कुंठाओं में 
क्यूं समर्पण कि ये रीत पले ?

ऐ मन भला क्यूं तेरी खातिर 
ये जीवन  उलटी चाल चले ?
- - - - - - - - - - - - - - 
ये सावन भला क्यूं पढ़ा करे 
प्यासे मरुथल कि तहरीर को 
क्यूं  गंगा सा  सत्कार मिले 
यहाँ   हर नदिया   के नीर को  

टूटी हुई   किसी   वीणा से ,
क्यूं सरगम कि तान मिले ! 

ऐ मन भला क्यूं तेरी खातिर 
ये जीवन उलटी चाल चले !
- - - - - - - - - - - - - - -
क्यूं पश्चिम से दिन निकले ?
और क्यूं पूरब में सांझ ढले ?
ऐ मन भला क्यूं तेरी  खातिर 
ये  जीवन   उलटी चाल चले ?

-- वंदना 

तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...