Thursday, August 11, 2011

ग़ज़ल



बात बात पे अब सब्र खोते नहीं है
रो चुके हैं बहुत  अब रोते नहीं है..
.
दिल   ये पागल है   तो हुआ करे
होश अपने हम अब खोते नही हैं..

बेबशी है कोई , जो  रहेगी  सदा 
जज्बात  बसमें कभी होते नहीं हैं ..

देखकर लहरें ..कह रहा है कोई
दिल को भी सलीके होते नहीं है ..

नींद आँखों की सो गयी कब से
ये ख़्वाब जाने क्यूं सोते नहीं हैं
..!


--वंदना

5 comments:

  1. बहुत ही खुबसूरत ग़ज़ल....

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  2. बेबसी है कोई, जो रहेगी सदा
    जज्बात बस में कभी होते नहीं....

    वाह! सभी अशआर उम्दा...
    सादर...

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  3. वाह: बहुत खूबसुरत..गजल..बधाई..

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  4. bahut khoob

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  5. बहुत अच्छी प्रस्तुति है!
    रक्षाबन्धन के पावन पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएँ!

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तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...