Saturday, November 26, 2011

बोझिल रात -2


वही जागती हुई    रात है   वही भटकती हुई आरजू 
वही है आलम ए गमन  और वही तरसती हुई जुस्तजू ...
वही चांदनी  में दरबदर.फिरते  चाँद कि है कहानी 
वही है अँधेरे से लड़ते इन जुगनुओं  की  दू ब दू*..!                       [दूबदू = भागदौड ]

वही सीने में पिघलता हुआ ये कठोर सा   हिम है 
वही आँखों से रिसती हुई  यादों  कि है हिकायत*                      [हिकायत = दास्ताँ / कहानी    ] 
वही दीद* ए तलब* में  दुआओं के पलटते  वरक*                   [दीद ए तलब = दर्शन कि चाह // वरक = पन्ने ]
वही उल्फत* ए तहरीर ,वही जब्त कि है  शिकायत !                
                                                                                     [उल्फत = चाहत // तहरीर =composition ]

साहिल कि रेत पर वही दास्ताँ शिकश्त ए दिल*  कि               [शिकश्त ए दिल = दिल कि हार ]
वही समन्दर कि खामोशियाँ वही तड़पती लहरों के नज़ारे 
वही हैं साँसों में उतरती हुई  इज्तराब* ए खशाक *                     [इज्तराब = बेचैनी // खशाक = कूड़ा करकट ]
वहीँ नींदों के खामेजाँ* ..उदास ख़्वाबों कि गुहारे*!                   [खामेजाँ = बसे हुए // गुहारे = प्रार्थना ]


वही गूंजती हुई कफस* में चिड़िया कि तरन्नुम *            [कफस = पिंजरा // तरन्नुम = धुन ]      
वही बिखरती हुई हवा ..वही तलब* ए मुश्कबू*..              [तलब ए मुश्कबू = कस्तूरी कि सुगंध कि चाह ]       [
अपनी दुआओं के सिमटे हुए वही दायरे हैं 
वही मोहब्बत का सफ़र हाँ वही है कू ए जुनूँ* ..                  [ कू ए जुनूँ = जुनूँ कि गली ]

तय  होता अंधियारों  का ये लम्बा सा सफ़र 
बुझते हुए चिरागों कि वही छोटी सी कहानी                           [ मुसव्विर = चित्रकार ]
वही तस्वीरों में मुसव्विर * कि उड़ान है गोया*                      [ गोया = मानो , जैसे 
वही फसानों में गुनगुनाती अपनी बेजुबानी* !                   [बेजुबानी  = inability of speak ] 

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##  बोझिल रात -1 ..यहाँ पढ़ सकते हैं ......
http://wwwbloggercom-vandana.blogspot.com/2010/01/blog-post_28.html



- वंदना 

7 comments:

  1. gazal hai to bahut hi khoobsoorat ...magar shuru kee panktiyan mushkil urdu shbdon kee vajah se meaning dekh kar samjhte hue ...flow me rukavat ki tarah lageen....last ki chhah panktiyan ..koi vyavdhaan nahi ...aanand aaya padh kar .

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  2. काफी जानी पहचानी लगी ये कविता...कुछ ऐसा मैंने भी लिखा है, लेकिन कभी पोस्ट नहीं किया..मेरी कवितायेँ अच्छी नहीं होती और आपके इस कविता के तो आसपास भी नहीं फटकेगी!!

    बहुत खूबसूरत..शब्दों के अर्थ साथ देकर आपने हम लोगों की थोड़ी मुश्किल आसान कर दी कविता समझने में!!

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  3. बहुत मर्मस्पर्शी और भावपूर्ण प्रस्तुति...बहुत सुंदर..

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  4. सुन्दर प्रस्तुति!

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  5. भावपूर्ण रचना ..सुन्दर...

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  6. बहुत खूब.. ऎसी "बोझिल रातों" का ये सिलसिला चलता रहे..ऎसी आरज़ू है हमारी..

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तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...