थक जायेंगे तो यहीं लौटकर आयेंगे
हम खुद से बाहर कहाँ तक जायेंगे
झंझोड़ कर जगा दे इस खाब से कोई
वरना उम्मीदों के पर निकल आयेंगे
कोई तस्लीम* बाकी हो दरमियाँ अपने
इतना अगर घुटेंगे तो मर ही जायेंगे !
हर चेहरे पे लिखी है एक ही कहानी
कितनी आँखों में खुद को पढ़ते जायेंगे
कबूलते हैं आज अपने हिस्से का सच
अपने आप से कब तक मुकरते जायेंगे
जिंदगी तुझको ये पहले से बताना था
मौत से पहले भी ऐसे सबात*आयेंगे !
वंदना
Tasleem - greeting , Sabaat - thahraav