Thursday, November 28, 2013

ग़ज़ल




लाख चाह कर भी पुकारा  जाता नही है 
वो  नाम अब  लबों पर     आता नही है 

इसे खुदगर्जी कहें या बेबसी का नाम दें 
चाहते हैं पर अना  से हारा जाता नही है 

दिल ख़्वाबों में भटकता एक बंजारा है 
कि जिसके हिस्से में सबात आता नही है  

छुप गया  वो चाँद अब आसमाँ के पीछे 
नूर ए अक्स मगर क्यूँ धुंधलाता नही है 

मुक्कमल दी हैं  हमने सजाएँ  दिल को 
कसूर मगर  इसका समझ आता नही है 

न तुम खफा रहो न किसी को रहने दो 
जो चला जाता है दुबारा आता नही है 

इस बात के एहसास और डर में मरते हैं 
 जिन्दा रहने का हुनर भी आता नही है  !!




~~ वंदना 



Tuesday, November 19, 2013

मुलाक़ात

       

बरसों के बाद यूं देखकर मुझे 
तुमको हैरानी तो बहुत होगी 

एक लम्हा ठहरकर तुम 
सोचने लगोगे ...

जवाब में कुछ लिखते हुए 
तुम्हारी उँगलियाँ लड़खड़ाएंगी 

बचपन कि किताब के कई धुंधले वर्क
तुम्हारे मन कि बेचैन हवा में उड़कर  
आँखों में उतर आयेंगे शायद 

तुम्हारे कई शरारती से सवाल 
तुमको हैरान करेंगे.. 

फिर एक अजीब इत्तेफाक का 
तुम इसे नाम भी दोगे..

मगर तुमको कहाँ एहसास भी होगा 
कि बचपन कि दहलीज़ से 
उम्र के इस पड़ाव तक 
मैंने इस पल को हमेशा 
अपनी उम्मीदों में जिया है  

तुमको खोजा है अक्सर 
नींदों कि भटकन में 
तुमको पाया है अक्सर 
सपनो कि सरगम में.. 

इल्तेज़ा है बस यही  
तुमसे ऐ मेरे दोस्त  
इस  मुलाक़ात को तुम 
आखिरी मुलाक़ात न करना !



~ वंदना 








तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...