Wednesday, December 3, 2014

ज़ज्बातों के नागफनी





वक्त भरता नही है 
अहम पर  लगी  चोट 
बल्कि बो देता है उसपर  
जज्बातों के नागफनी

जिसे सींचती हैं 
 मन की तृष्णा 
अकार ले रहा होता है 
जो अंतर्मन में 
अजन्मे वियोग  की तरह 

कान दबाये सुनते रहते हैं 
हर सिम्त गूंज़ते उस शोर को 
जो चुप्पियों के तिड़कने की गूंज है 

नही बचता 
जिंदगी के  चलचित्र में 
ऐसा कुछ भी 
जैसा दिखाई दे रहा होता है!


~ वंदना  












तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...