Thursday, July 14, 2016

नज़्म

वो अक्सर कह देती थी
अपनी बातों में कुछ अनकहा भी
और मैं अनसुना करते हुए
सब सुन भी लेता था

मगर एक दिन मेरे हिस्से का शोर
मुझे सौंप कर
वो  चुप हो गई
तब से उसकी चींखों का भी
मुझसे राब्ता हो गया है

वो उड़ेल देती थी शब्दों में खुद को पूरा पूरा
और मैं एक आधी अधूरी प्यास लिए
तृप्ति की परिभाषाएँ तय करता रहता था

उसकी मोहब्बत घुटनो के बल रेंगते हुए
घोट देती थी अक्सर गला मेरी अना का
और मैं बार- बार खुद में ही  मर जाता था

मैं दर्ज़ हूँ ताबूत में बंद
किसी किताब में और
दुनिया की उड़ती खबरों में
अपना होना तलाश रहा हूँ

~ वंदना
७/१४/२०१६

Thursday, July 7, 2016

ग़ज़ल




पहले पहल ही दिल दुखता है जब चीज़ कोई खो जाती है
फिर हमको खोते  रहने की,  इक आदत सी हो जाती है

पानी में फेंका न करो  अपनी किसी इबादत को
 पहले सिक्के खोते हैं, और, फिर दुआ खो जाती है

कितनी देर ठहर सकेगी पलकों पर ये  पीर पुरानी
आँखों को मलते ही दिल में ,टीस नयी उग आती है

अपनी समझ पतवार ए जिंदगी, हम गुमाँ में रहते हैं
है जाना हमको वहीं जहाँ, ये लहर  हमें ले जाती है

कौन सुने साँसों की सरगम, दिल की ताल पहचाने कौन
कदम ताल का नाम जिंदगी , सो ये चलती जाती है



~ वंदना











Tuesday, July 5, 2016


त्रिवेणी

आसमान जिसमे कई छेद हैं ,चादर जो बेहद मैली है 
एक टूटा हुआ कांच का टुकड़ा है पैर में धंसा हुआ 

जिंदगी भीगता हुआ एक लंगड़ा मुसाफिर है !!



~ वंदना 

तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...